तुझे देखा जी भर के,
कुछ आस आये,
वक्त मिले तू तो मेरे पास आये।
उल्फ़तों में दिन गुज़रता है,
फिर भी शिकायत नहींआती,
कैसे समझाऊं तेरा होना,
मुझे रास आये।
तुम्हारी हज़ार ख़्वाहिशें मैं पूरी करूँ,
मेरी इतनी-सी मन्नत है दोस्त,
फिर-फिर से कोई नया साल आये और तू मेरे साथ गाये।।
तेरी मासूम नज़रों का अनायास फ़िक्र है मुझे।
पल भर के नज़राने में मेरी जान चली जाए।
हिफाज़त करुँ तेरे साये में रहकर ,
होकर तेरा, मेरी उम्र गुज़र जाये
होकर तेरा, मेरी उम्र गुज़र जाये।
सूचित कुमार यादव (असिस्टेंट प्रोफेसर)
दिल्ली विश्वविद्यालय