प्रिय ऋषि जी – आशिक

प्रिय ऋषि जी - आशिक साहित्य जन मंथन

अभी अभी एक मित्र ने फ़ोन पर आपके निधन की ख़बर दी है। सुनकर लग रहा है कि मेरे भीतर का बहुत सारा बचपन मर गया है। मेरी उम्र के लोग, जो नब्बे के दशक की पैदाइश हैं, उनके लिए आप उनके बचपन की खूबसूरती थे। दूरदर्शन के दौर में बड़े हो रहे हैं हम बच्चों के आप सबसे प्यारे, सबसे सुंदर, सबसे रूमानी अभिनेता थे।

अचानक से मेरी आंखों के सामने ” श्री 420 “, ” मेरा नाम जोकर “, ” बॉबी “, ” लैला मजनू “, ” कर्ज़ “, ” सागर “, ” प्रेम रोग “, ” चांदनी “, ” दीवाना ” आदि फ़िल्मों के वह सीन खुल गए हैं, जिन्हें हज़ारों बार देखकर, मैंने शीशे के सामने सैकड़ों दफा एक्टिंग की थी।

आप हिंदुस्तानी सिनेमा जगत के सबसे बड़े फ़िल्मी घराने ” कपूर ” घराने के प्रतिनिधि सदस्य थे। आपके दादाजी पृथ्वी राज कपूर, आपके पिताजी राज कपूर की एक विरासत थी, जिसे आप बख़ूबी पूरी ज़िम्मेदारी के साथ लेकर चलते रहे जीवन भर।

यूं तो आपके अभिनय, आपके जीवन, आपकी प्रेम कहानी पर तमाम तरह के लेख लिखे गए हैं और लिखे जाएंगे। लेकिन मैं आज एक प्रशंसक की तरह आपसे रूबरू होकर यह ख़त लिख रहा हूं।

मेरी सबसे पहली याद आपकी है तो फ़िल्म ” मेरा नाम जोकर ” की है। फ़िल्म मेरा नाम जोकर में आपने जोकर राजू के बचपन का किरदार निभाया था। राजू को अपनी टीचर सिमी ग्रेवाल से मुहब्बत हो जाती है। और वह दिन रात उनके ही ख़्वाब देख रहा होता है। इक रोज़ राजू को मालूम पड़ता है कि सिमी ग्रेवाल की शादी मनोज कुमार से होने वाली है। तब पहली बार राजू का दिल टूट जाता है। ऋषि जी, मैंने यह फ़िल्म तब देखी थी जब मैं ख़ुद राजू की उम्र का था और मुझे अपने स्कूल की साइंस की शिक्षिका से बेपनाह इश्क़ था। इत्तेफ़ाक़ की बात यह है कि उनकी शादी भी मेरी आंखों के सामने हुई थी। यह मेरा आपसे पहला परिचय था। मुझे एक पल को लगा कि आप मेरी कहानी सिनेमा के पर्दे पर जी रहे थे। हालांकि यह फ़िल्म आपके पिताजी राज कपूर के लिए बुरा सपना थी। इसलिए कि फ़िल्म फ्लॉप हुई थी और वह कर्ज़ में डूब चुके थे। लेकिन आपके लिए यह फ़िल्म सुनहरी याद थी। इस फ़िल्म में आपके निभाए किरदार को सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का नेशनल अवॉर्ड मिला था। जब आप नेशनल अवॉर्ड को लेकर अपने दादाजी पृथ्वी राज कपूर जी के पास पहुंचे तो उनकी आंखें नम और सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। आपने यह चमत्कारिक क्षण इतनी कम उम्र देखा, यह आपके पूर्वजों के पुण्य कर्म और आपकी मेहनत थी।

आपसे दूसरी मुलाक़ात फ़िल्म बॉबी में हुई थी। आपकी भोली शक्ल, मासूम मुस्कान का मैं एक क्षण में फैन हो गया था। आपकी बेल बॉटम पैंट का ऐसा दीवाना हुआ कि फिर दो दिन बाद बाज़ार जाकर कपड़ा ख़रीदा और वैसी ही पैंट सिलवाई। फ़िल्म में ” मैं शायर तो नहीं ” गीत के ज़रिए जो आपने एंट्री मारी थी और जिस तरह अरुणा ईरानी के साथ झूमे थे, वह सच में बेहद ख़ूबसूरत था। उस क्षण मुझे दिख गया था कि आप भारतीय फ़िल्म जगत के सबसे रूमानी अभिनेता बनेंगे। डिंपल कपाड़िया के साथ आपके गीत ” हम तुम इक कमरे में बन्द हो ” को देखकर सचमुच लगा कि प्रेम से खूबसूरत कुछ मुमकिन नहीं इस प्रकृति में।

फ़िल्म कर्ज़ में आपका गिटार बजाना इतना रास आया था कि गिटार क्लासेज ज्वाइन की। लेकिन गायन में ऐसी रुचि थी कि गिटार तो नहीं सीख पाया मगर गले से फ़िल्म कर्ज़ के प्रतिनिधि गीत ” एक हसीना थी, एक दीवाना था ” की धुन ज़रूर निकालने लगा था। चमकती लाइट वाली जैकेट खरीदने के लिए कई महीनों तक अपने पिताजी के आगे रोता रहता था। उन्होंने भी शर्त रखी थी कि क्लास में फर्स्ट आओ और जैकेट पाओ। लेकिन अफ़सोस कि न कभी फर्स्ट अाए और न कभी जैकेट मिली। आप तो जानते ही हैं कि हम आर्टिस्ट लोग कहां ये फर्स्ट पढ़ाई लिखाई किताब में दिल लगाते हैं।

फ़िल्म ” सागर “, ” चांदनी ” और ” दीवाना ” में आपके प्रेम त्रिकोण को देखकर मैं बहुत दुविधा में पड़ गया था। मुझे इक पल को यक़ीन ही नहीं हुआ कि आपके होते हुए सागर में डिंपल कपाड़िया, चांदनी में श्री देवी और दीवाना में दिव्या भारती किस तरह से कमल हासन, विनोद खन्ना और शाहरुख खान के प्रेम में प्रवेश कर जा रही हैं। जिसने एक पल आपको दिल दे दिया, वह किस तरह से किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति आसक्ति का भाव रख सकता है। हालांकि कमल हासन के केस में कहानी थोड़ी सी अलग थी फिर भी मुझे अपनी बचपन वाली समझ के हिसाब से यही महसूस होता था कि डिंपल यह ठीक नहीं कर रही हैं।

ऋषि जी यहां मैं दो फ़िल्मों का ज़िक्र करना चाहता हूं। लड़कपन में दूरदर्शन पर ” फिल्मोत्सव ” का प्रसारण चल रहा था। उस वक़्त आपकी दो फिल्में देखीं। ” लैला मजनू ” और ” प्रेम रोग “। दोनों फिल्में देखकर मन दुःखी हो गया। आत्मा कांप गई। बॉबी, खेल खेल में देखने के बाद जो रूमानी इश्क़ की तस्वीर बनी थी वह टूट गई थी। अब समझ आया था कि इश्क़ में कितना दर्द, कितनी पीड़ा है। यह पीड़ा झेलना और ज़िंदा रह जाना बहुत कठिन है।

फ़िल्म प्रेम रोग के गीत ” मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायद ” को फिल्माते हुए आपको जब कुछ दुविधा हुई तो आपके पिताजी ने दिलीप कुमार साहब से प्रेरणा लेने के लिए कहा। आपने फिर जो भाव स्क्रीन पर उकेरे हैं कि मैं रात को सपना देखता था कि मैं हल्द्वानी शहर के मुख्य चौराहे पर सर्दी से ठिठुरती रात में काला कम्बल ओढ़कर बैठा हूं और ” मैं तुझे कल भी प्यार करता था, मैं तुझे अब भी प्यार करता हूं ” गाए जा रहा हूं।

मेरे ज़ेहन में लैला मजनू इस तरह बस गई थी कि मैंने अपनी प्रेमिका का नाम फ़ोन में ” लैला ” नाम से सेव कर लिया था। इसके अलावा मैं खालिस उर्दू में बातचीत करने लगा था। ” आपके हुस्न की खुशबू से मेरी आंखें महकने लगी हैं “, कुछ ऐसे संवाद मैं गढ़ने लगा था।

आप पहले अभिनेता थे बॉलीवुड में जिनका डांस मुझे बेहद प्रभावित कर गया। आप अपने चाचाजी शम्मी कपूर साहब से शायद मुतासिर रहे हों। आपके आने से फ़िल्मों की इमेज बदली। एक रॉक स्टार, चुलबुले हीरो की छवि भी दर्शकों के दिलों तक पहुंच गई। कव्वाली गायन हो या फिर रॉक स्टार परफॉर्मेंस आपने ज़बरदस्त प्रदर्शन किया।

ऋषि जी कहते हैं कि बाल मन जो कुछ पढ़ लेता है, वह आजीवन अमिट छाप की तरह रह जाता है। मैने आपको बचपन में अपनी आत्मा में उतार लिया था। इसलिए दीवाना, दामिनी, चांदनी, प्रेम ग्रंथ के बाद का कोई किरदार, कोई फ़िल्म मुझे याद ही नहीं है। मैंने आपकी सभी फ़िल्में देखी हैं। यानी मुल्क, 102 नॉट आउट तक ही कोई फ़िल्म नहीं छोड़ी। लेकिन दिल में तो 20 साल वाला ऋषि कपूर ही बसा हुआ था, है और रहेगा।

सबसे ख़ूबसूरत है यह है कि जिस तरह आपने रिश्ते निभाए। आपका अपने पिता राज कपूर के साथ जो आत्मीय रिश्ता था, वह आज भी आंखें नम कर देता है। अपने सभी भाईयों में आपने ही सही मायने में अपने अभिनय से राज साहब की विरासत कायम रखी। अपनी पत्नी नीतू सिंह के साथ जो प्रेम का रिश्ता बना, उसकी मिसाल मैं हमेशा ख़ुद को देता हूं। फ़िल्म ” जब तक है जान ” में नीतू जी के साथ आपने जो प्रेम पर संवाद बोले वह मैंने उस रोज़ ही डायरी में नोट कर लिए थे

” हर इश्क़ का एक वक़्त होता है, वह हमारा वक़्त नहीं था, इसका यह मतलब नहीं कि वह इश्क नहीं था, मुझे अपने इश्क पर हमेशा से पूरा भरोसा था “।

आपने पुत्र रणबीर कपूर को आपने जिस तरह से बड़ा किया, वह भी अनुकरणीय है। रणबीर कपूर में ज़रा सा भी यह एहसास नहीं है कि वह हिन्दुस्तानी सिनेमा जगत के सबसे बड़े घराने से हैं। उन्हें भी अपनी पहली फ़िल्म के लिए निर्देशक संजय लीला भंसाली के प्रोडक्शन हाउस की राह पकड़नी पड़ी। इससे पहले असिस्टेंट का काम करना पड़ा। आपके पिता राज कपूर बताते थे कि आपको स्वयं राज साहब के ऑफिस में झाड़ू, साफ सफाई करनी पड़ती थी। यही संस्कारों का एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक पहुंचना ही तो भारतीयता है, जिसे आपने कायम रखा था।

आज मन दुःखी भी और सुकून में भी है। दुःखी इसलिए कि अभी आपकी कई और फ़िल्में देखने का लालच था। सुकून इसलिए कि शायद इस उम्र में कैंसर की असहनीय पीड़ा से मुक्ति, आपके लिए सर्वश्रेष्ठ इलाज, राहत थी प्रकृति की नज़र में।

मेरा यक़ीन है कि जब तक दुनिया में मुहब्बत है, हिंदी फ़िल्में हैं, लोग आपकी फिल्में देखकर प्रेम करना, प्रेम जीना और प्रेम हो जाना सीखते रहेंगे।

आपको प्रेम भर नमन ऋषि जी ❣️❣️❣️❣️❣️

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *