यह एक संयोग था या प्रकृति का समझा बूझा गूढ़ व गुप्त विधान कि करुणा की प्रतिमूर्ति मानवता के महानायक गौतम बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण तीन घटनाएं (जन्म, ज्ञान प्राप्ति एवं मृत्यु) आज वैशाख पूर्णिमा के दिन ही घटित हुईं। इन तीनों घटनाओं के इतिहास को समेटे बैसाखी का पूर्ण चांद इतराने के साथ-साथ बुद्ध के विछोह से मायूस भी रहता है और मानों बुद्ध से बार बार सवाल कर रहा हो कि “आपने मुझे अपने जन्म का साक्षी बनाया, आपने मुझे अपने ज्ञान प्राप्ति का साक्षी बनाया जिससे मैं आत्मविभोर व आह्लादित होने के साथ-साथ धन्य हो गया हूं, लेकिन आपने मुझे अपने इस दुनिया को छोड़ने का साक्षी क्यों बनाया?” पर सबके उलझे सवालों को सुलझाने वाला तो शायद हमेशा के लिए इसी दिन चला गया था और चांद का यह प्रश्न शायद हमेशा अनुत्तरित रहेगा, क्योंकि करुणा से छलछलाती आंखें संसार को बार-बार नहीं मिलती।
विश्व की संपूर्ण मानव जाति बुद्ध जैसे अनमोल मानव रत्न को कभी खोना नहीं चाहेगी इसलिए उनके जाने का दुख एवं निराशा स्वाभाविक है,लेकिन इस दुख व निराशा से भी उनके उपदेश कि “जो भी इस संसार में आया है उसका जाना तय है, क्योंकि मृत्यु का अनुबंध तो जन्म के साथ ही हो जाता है। इसीलिए मिलन कितना भी दीर्घकालिक क्यों न हो एक दिन विछोह में तब्दील हो ही जाता है”, उबारनें के साथ साथ संतुष्ट भी करते हैं।
उनका जन्म हमें हर्ष एवं खुशी देता है तो उनके ज्ञान प्राप्ति एवं उपदेश हमें ऊर्जावान एवं दुख व भय रहित बनाते हैं और उनका महापरिनिर्वाण (मृत्यु) हमें सत्य से अवगत व साक्षात्कार कराता है।
त्रिविध पावनी वैशाख पूर्णिमा की सभी करुणा,समानता व मानवता उपासकों को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं!इसी के साथ-
बुद्धम शरणम गच्छामि
धम्मम शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि
!नमो बुद्धाय!
© संतराम प्रजापति