‘उसने कहा था’ और ‘चीफ की दावत’-
मनीषा शर्मा
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
उसने कहा था
चंद्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के प्रथम सर्वश्रेष्ठ कहानीकार थे, इनकी सृजनशीलता के मुख्य चार पड़ाव है- मर्यादा, समालोचक, प्रतिभा और नागरी प्रचारिणी पत्रिका, इन्होंने तीन कहानियों की रचना की -सुख में जीवन , बुद्धू का कांटा और उसने कहा था,जो हिन्दी जगत में मील का पत्थर साबित हुई,और इनका पर्याय बनी ,गुलेरी जी ने कम लिखकर अधिक ख्याति हासिल की इनमें अगाध पांडित्य और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय था ,अतीत और वर्तमान के सूक्ष्मदर्शी विद्वान थे।
नामवर सिंह लिखते है-
” कहानी छोटे मुंह बड़ी बात करती हैं “
अर्थात लघु जीवन खंड के माध्यम से एक संपूर्ण जीवन बौद्ध या सत्य को प्रकाशित करती है।
यह कहानी कल्पना शक्ति, यथार्थ, बुद्धिमता, मानवता, करुणा, त्याग, देश प्रेम, संस्कृति, भावात्मकता , उदात्ता, विशुद्ध प्रेम, प्रेम के रूप ,मनोविज्ञान आदि है
प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर उसने कहा था कहानी रची है ,यह एक निश्चल प्रेम की कहानी है कथावस्तु और शिल्प दोनों ही स्तरों पर यह कहानी का गठन बेजोड़ है बालपन अपने परिपक्वता में पहुंचकर ना तो मलिन होता है और ना ही मांद पड़ता है।कहानी का प्रथम दृश्य अमृतसर के एक भीड़ भरे बाजार में खुलता है जहां एक 12 वर्ष का बालक कुछ सामान लेने बाजार जाता है कहानी का अगला दृश्य फ्रांस की जमीन पर चल रहे प्रथम विश्वयुद्ध पर जहां ब्रितानी भारतीय सैनिक के रूप में जमादार लहना सिंह जर्मन सिपाहियों पर भारी पड़ता है सूबेदार हजारा सिंह और उसके बेटे बोधा सिंह पर कोई आंच ना आने पाए अपनी जान पर खेलकर सूबेदार हजारा सिंह और उसके बेटे बोधा सिंह को बचा लेता है, संदेश देता है जो उसने कहा था मैंने वह कर दिया दरअसल यह कहानी तीन भागों में बटी है पाठक को तीसरे भाग में पहुंचकर पता चलता है कि लहना सिंह वही लड़का है और सूबेदारनी हजारा सिंह की पत्नी वही लड़की है जिसने जंग पर जाते हुए लहना सिंह से यह वादा किया था कि जैसे उसने बचपन में उसकी जान बचाई थी ऐसे ही अब वह उसके पति और बच्चों की भी रक्षा करें उज्जवल और शिल्प संरचना में पूर्व दीप्ति का प्रयोग परिवेश के अनुसार भाषा की कसावट में गुलेरी जी की कहानी में वह परिपक्व है कि आज भी इस कहानी का सौंदर्य है।
डॉ. गोपाल राय के अनुसार -“कहानी की संरचना की दृष्टि से चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था विकास के सामान्य नियम के रूप में नहीं बल्कि अपवाद के रूप में सामने आती है इसके पहले प्रेमचंद की कहानियां किसी प्रसंग में या विचार की प्रस्तुति से आरंभ होती है,यह कहानी गुलेरी जी ने लेखक पाठक संबंध काल- योजना अवलोकन बिंदुओं के परिवर्तन स्थानांतरण और पूर्व दीप्ति आदि को लेकर ऐसे प्रयोग किए हैं जो इसके पहले हिंदी कहानी में नहीं दिखाई पड़ते हैं। नायक लहना सिंह ऐसा ही प्रेमी है जो अपने बचपन के प्यार को साथ लिए जी रहा था और उस प्रेम से जब उसका साक्षात्कार होता है तो सूबेदारनी के रूप में जो उस खामोश प्रेम के एवज में अपने पति और बच्चे की सुरक्षा मांगती है ,जिसे लहना सिंह अपने प्राण देकर पूरा करता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी गुलेरी जी की “उसने कहा था” कहानी से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अपने हिंदी साहित्य का इतिहास में इस कहानी की चर्चा करते हुए लिखा कि इसके पक्के यथार्थवाद के बीच सुरुचि की मर्यादा के भीतर भावुकता का चरम उत्कर्ष अत्यंत निपुणता के साथ स्थित है -“भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है” केवल झांक रहा है निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा है कहानी भर में कहीं प्रेमी की निर्लज्जता प्रगलभता वेदना का वीभत्स विवृति नहीं है सुरुचि के सुकुमार से सुकुमार स्वरूप पर कहीं आघात नहीं पहुंचता इसकी घटनाएं ही बोल रही हैं पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।
कहानी की शुरुआत किशोर अवस्था के प्रेम उन आकर्षण से शुरू होती है और अंतिम परिणति त्याग एवं बलिदान के संवादों के तुकांत से होती है जैसे
” तेरे घर कहां है ?
“मगरे में ,और तेरे?
“माझे में ,यहां कहां रहती है?
“अमृतसर की बैठक में,
वहां मेरे मामा होते हैं”
“मैं भी मामा के यहां आया हूं, उनका घर गुरु बाजार में है।”
नरेंद्र कोहली के अनुसार –
“प्रवाह पूर्ण खड़ी बोली में गुलेरी जी ने पंजाबी के शब्दों में छोंक दी है उनकी अपनी प्रवृत्ति तत्सम शब्द आगे की ओर है किंतु उनके पंजाब पात्र उद्यमी को उदमी ही बोलते हैं।” इस कहानी में लहना सिंह,, सूबेदार ,वजिरा सिंह, कीरत सिंह , अब्दुल्लाह ,सूबेदारनी, पात्र हैं।
कहानी का आरंभ अमृतसर नगर के चौक के बाजार से एक 12 वर्षीय बालक एवं 8 वर्षीय बालिका से होता है दोनों बालक मामा के यहां आए हुए हैं दोनों बालक मामा के यहां आए हुए हैं यह दोनों एक दुकान पर सामान लेने आते हैं और बालक ,बालिका से पूछता है –
तेरी कुड़माई हो गई?
इस पर बालिका बोलती है धित यह शब्द ना जाने कितनी बार वह उस बालिका से पूछता है एक दिन इस प्रश्न का उत्तर उसे मिलता है-
हां हो गई ।
“कब?
कल, देखते नहीं यह रेशम से…
दूसरे भाग में जर्मनी की लड़ाई का वर्णन किया गया है इसमें लहना सिंह को युवा दिखाया गया है और वह जर्मनी की लड़ाई में लड़ने के लिए सेना में भर्ती हो गया है लहना सिंह सूबेदार के घर जाता है घर पर स्वागत सत्कार के पश्चात सूबेदार लहना सिंह से कहता है कि मेरी पत्नी तुम्हें जानती है और तुम्हें बुला भी रही है ऐसा सुन उसे आश्चर्य होता है वह जो सूबेदार ने से मिलता है तो उसे 25 वर्ष पूर्व की याद दिलाती हुए कहती है तेरी कुड़माई हो गई और कहती है जिस तरह उस समय उसने एक बार घोड़े की लातों से उसकी रक्षा की थी उसी प्रकार उसके पति और एकमात्र पुत्र की भी वह रक्षा करें वह अपना आंचल पसार कर भिक्षा मानती है यह बात लहना सिंह के मर्म को छू जाती है युद्ध भूमि पर लहना सिंह ने उसके पुत्र बोधा सिंह एवं सूबेदार की रक्षा करता है और वह शहीद हो जाता है यही इस कहानी के शीर्षक की सार्थकता भी स्पष्ट करता है
🖊️ पूर्व दीप्ति शैली उसने कहा था कहानी में लेखक ने समय विस्थापन तथा पूर्व दीप्ति शैलियों का प्रयोग किया है ऐसी घटनाएं जो पहले ही घट चुकी हो किंतु उन्हें बाद में दिखाया जाए उसे समय विस्थापन शैली कहा जाता है कहानी में लहना सिंह और हजारा सिंह के पूर्व जीवन की घटनाओं का प्रस्तुतीकरण, लेखक ने इस शैली का प्रयोग किया है कहानी के अंत में पूर्व शैली के द्वारा गुलेरी जी ने इस कहानी को नहीं देती ।
विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार -“प्रेम के बारीक तारों से बुनी बेहद संजीदा और कलात्मक कहानी जिसे उचित ही कई लेखक और आलोचक अपने समय से 20 साल आगे की कहानी मानते हैं आज भी जिसका स्वाद फीका नहीं पड़ा इसी उस्ताद नफन के कारण गुलेरी सिर्फ तीन कहानियां लिखी उसने कहा था, सुख में जीवन ,बुद्धू का कांटा लिखकर हिंदी के अमर कथाकार हो गए”
कहानी जीवन के व्यापक परिवेश को कर्तव्य एवं प्रेरणा से संबंध कर जीवन यथार्थ के आयामों को विकसित करने का मार्ग खोल दी है जिसमें लहना सिंह के माध्यम से निश्चल प्रेम त्याग ,वीरता और बलिदान का संदेश मिलता है।
🖊️ मृत्यु का साक्षात्कार
मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है जन्म भर की घटनाएं एक-एक करके सामने आती है सारे दृश्यों के रंग साफ हो जाते हैं समय की धुंध बिल्कुल उन पर से हट जाती है
🖊️ आत्मसमर्पण
बोधा गाड़ी पर लेट गया भला आप भी चले जाओ सुनिए तो सुबह हो रही है ,चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था वह मैंने कर दिया।
गाड़ियां चल रही थी सूबेदार में चढ़ते -चढ़ते लहना का हाथ पकड़कर कहा
तेने मेरे और बोधा के प्राण बचाए हैं लिखना कैसा ? साथ ही चलेंगे। अपनी सूबेदारनी को तू ही कह देना। उसने क्या कहा था?
” अब आप गाड़ी पर चढ़ जाओ मैंने जो कुछ कहा वह लिख देना और कह देना।”
🖊️ प्रेम की सात्विकता
एक मामूली सी घटना व्यक्ति के अंतर्मन में फैल कर उसके जीवन को किस निर्णायक बिंदु पर ले जा सकती है प्रेम की सात्विकता मनुष्य को कितने उच्च भाव भूमि पर ले जा सकती है इसमें घटनाक्रम कालक्रम पर नहीं मनो भूमि के अनुसार अवतरित है ।
🖊️ करुणा
यह सिखों के जीवन की शौर्य भरी कहानी है इसमें आरंभ से अंत तक करुणा की धारा अंतर व्याप्त है और करो ना तथा दुखांत के साथ है उदात्त का भाग जो लहना सिंह के आत्म त्याग में बड़े कोमल रूप में प्रस्फुटित होता है ।
🖊️उदात्त/भावात्मकता
उदात्ता की परिकल्पना व्यवहार में अनिवार्य रूप से ट्रेजेडी और महाकाव्य के साथ जुड़ी रहती है जिसका संबंध लोंजाइनस ने छोटे-बड़े विविध काव्य के रूप में माना है करुणा तथा दुखांत के साथ है उदात्ता का भाग जो लहना सिंह के आत्म त्याग में बड़े प्रथम विश्वयुद्ध में हुआ हैं।
🖊️ प्रथम विश्वयुद्ध का चित्रण इसमें एक और जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया ,हंगरी ,बोल बारिया और तुर्की और दूसरी तरफ ब्रिटेन फ्रांस ,रूस, जापान ,इटली ।
भारत इस युद्ध में नहीं था फिर भी भारतीय सिपाही इसमें लड़े और अपनी जान दी ।
🖊️देश भक्ति
प्रथम विश्वयुद्ध 1914 से 1918 तक का वर्णन आया है यह युद्ध दो भागों में बटा हुआ था पहला जर्मनी की लड़ाई में दूसरा जापान की लड़ाई में ।भारत इस युद्ध में नहीं था फिर भी भारतीय सिपाही उसमें लड़े और अपनी जान दी यही भारत वासियों का देश के प्रति भक्ति की भावना को जागृत करता है
कुछ दिन कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा फ्रांस और बेल्जियम 68 वी सूची…… मैदान में घावों से मरा …. नंबर 77
सिक्ख राइफलस जमादार लहना सिंह ये ही देश के प्रति बलिदान का वर्णन है
🖊️सेना कैंपिंग
छावनी के अंदर का वर्णन किया गया है बोधा सिंह को ठंड से बचाने के लिए लहना सिंह का सहयोग और उसके बाद सेना कैंप में छलिया लगता साहब का घुसना।
यह आदर्श कहानी ,प्रेम का यथार्थ चित्रण, ,मानवीय चरित्र का उद्घाटन सौंदर्य का विशिष्ट में चित्र , इंसान की मजबूरी, प्रेम के विविध रूप, सैनिक जीवन का यथार्थ चित्रण संस्कृति का जीवंत चित्रण।
आचार्य नंददुलारे वाजपयी के अनुसार- ” उसने कहा था में घटनाएं भी है सहयोग भी है और रोमांटिक दृष्टि भी है लेकिन उन सबको संगठन इस वशिष्ठ के साथ हुआ है जो प्रेम कर्तव्य और आत्म बलिदान का पारस्परिक संघर्ष का इतना असाधारण और संवेदनात्मक रूप में हुआ है कि कहानी नहीं हो जाती है निर्विवाद रूप से कहानी का इस नए पन और उसकी कहानी कला को दृष्टिपात करते हुए ही समीक्षक इसे हिंदी की पहली आधुनिक कहानी का गौरव देते हैं “
संवेदना की दृष्टि से काफी सार्थक उपयोग किया गया है कहानी की विशिष्टता का सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि लेखन के एक सदी बाद भी यह कहानी आज भी प्रासंगिक है
यह आदर्श कहानी ,प्रेम का यथार्थ चित्रण, ,मानवीय चरित्र का उद्घाटन सौंदर्य का विशिष्ट में चित्र , इंसान की मजबूरी, प्रेम के विविध रूप, सैनिक जीवन का यथार्थ चित्रण संस्कृति का जीवंत चित्रण।
आचार्य नंददुलारे वाजपयी के अनुसार- ” उसने कहा था में घटनाएं भी है सहयोग भी है और रोमांटिक दृष्टि भी है लेकिन उन सबको संगठन इस वशिष्ठ के साथ हुआ है जो प्रेम कर्तव्य और आत्म बलिदान का पारस्परिक संघर्ष का इतना असाधारण और संवेदनात्मक रूप में हुआ है कि कहानी नहीं हो जाती है निर्विवाद रूप से कहानी का इस नए पन और उसकी कहानी कला को दृष्टिपात करते हुए ही समीक्षक इसे हिंदी की पहली आधुनिक कहानी का गौरव देते हैं “
संवेदना की दृष्टि से काफी सार्थक उपयोग किया गया है कहानी की विशिष्टता का सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि लेखन के एक सदी बाद भी यह कहानी आज भी प्रासंगिक है
चीफ की दावत
भीष्म साहनी हिंदी साहित्य के मूर्धन्यकार एवम् प्रेमचंद की परंपरा के अग्रणी लेखक है ,यह साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित हैं । यह मानवीय मूल्यों के सदैव हिमायती रहे।इन पर प्रेमचंद और यशपाल की गहरी छाप है । इनकी कहानी में यथार्थवादी ,मध्यवर्ग , खोखलापन, मानसिक अंतर्द्वंद ,वर्गीय स्थिति, पारिवारिक मूल्यों के प्रति अनास्था , अवसरवादी एवं नई पीढ़ी पर व्यंग्य हैं।
डॉ नामवर सिंह लिखते हैं- “नए कहानी कारों में भीष्म साहनी में एक ही साथ इन दोनों विशेषताओं का सर्वोत्तम सामंजस्य मिलता है एक इकाई के रूप में उनकी कहानियां अत्यंत गठित होती है साथ ही सदैव किसी ना किसी प्रकार की विडंबना को व्यक्त करती है और यह बिना किसी न किसी रूप में हमारे वर्तमान समाज के व्यापक अंतर्विरोध की ओर संकेत करती है चीफ की दावत कहानी को गहराई में जाकर देखने से मां एक चरित्र से आगे जाकर प्राचीनता का प्रतीक भी लगती है समग्र रूप में कहानी अपनी सार्थकता में सफल है।”
यह एक यथार्थवादी कहानी है मध्यवर्ग की बाहरी आडम्बर प्रियता ,खोखलापन , मानसिक अंतर्द्वंद ,वर्गीय स्थिति पारिवारिक मूल्यों के प्रति आस्था और पनप रही अवसरवादीता का चित्रण है, नई पीढ़ी पर व्यंग्य हैं ,जिनका मुख्य लक्ष्य भौतिक प्रगति करना ही है ।
इसमें शामनाथ ,उसकी पत्नी ,श्यामनाथ की बूढ़ी मां और एक विदेशी चीफ । श्यामनाथ एक मध्यवर्गीय नौकरीपेशा व्यक्ति है उसकी जीवनशैली में दिखावा बहुत ज्यादा है उसने विदेशी चीफ को दावत के लिए अपने घर बुलाया है वह पदोन्नति पाने के लिए उन्हें प्रसन्न करना चाहता है शाम नाथ की मां गांव की एक साधारण अशिक्षित स्त्री है इसीलिए शामनाथ को चीफ से मिलाने में शर्म आ रही थी वह मां को झमेला कहता है वह कुछ ऐसा इंतजाम करना चाहता था कि मां चीफ के सामने न आए, लेकिन अंत में वही मां ऐसी महत्वपूर्ण नारी के रूप में उभरती है जिससे बेटे की तरक्की के लिए परिस्थितियों के सामने सिर झुका देती है।
और शामनाथ को वह अपनी तरक्की की सीधी नजर मूल तत्व मानवता का भाव मां का बलिदान एक बूढ़ी मां के दर्द की कहानी सामाजिक और आर्थिक व्यवहार है ।
🖊️ बलिदान
मां की इच्छा है कि वह हरिद्वार जाकर रहे लेकिन वह नहीं जाती है
” बेटा, तुम मुझे हरिद्वार भेज दो । मैं कल से कह रही हूं। “क्या कहा ,मां? यह कौन- सा राग तुमने फिर छोड़ दिया? श्यामनाथ का क्रोध बढ़ने लगा था ,
“नहीं बेटा अब तुम अपनी बहू के साथ जैसा मन चाहे रहो। मैंने अपना खान पहन लिया ।अब यहां क्या करूंगी ।जो थोड़े दिन जिंदगानी के बाकी है ,भगवान का नाम लूंगी । तुम मुझे हरिद्वार भेज दो!
🖊️मां का समर्पण
हरिद्वार जाने से मना कर देती है तब फुलकारी बनाने के लिए मान जाती है
“जो साहब खुश हो गया, तो मुझे इससे बड़ी नौकरी मिल सकती है ,मैं बड़ा अफसर बन सकता हूं ।”
मां के चेहरे का रंग बदलने लगा धीरे-धीरे उनका झुर्रियों भरा मुंह खिलने लगा आंखों में हल्की- हल्की चमक आने लगी।
” तो तेरी तरक्की होगी ,बेटा। “तरक्की यूं ही हो जाएगी?
साहब को खुश रखूंगा तो कुछ करेगा वरना उस की खिदमत करने वाले क्या थोड़े हैं ?
फिर तो मैं फुलकारी जरूर बनाऊंगी ।
माता- पिता सारी कमाई बेचकर बेटों को पढ़ाते हैं और बेटे बड़े होकर उन्हें वस्तु की तरह देखते हैं एक पूरी जिंदगी में बच्चो को पैरों पर खड़ा करने के लिए सारी मेहनत करते हैं उसके पश्चात बच्चे अपने माता -पिता को घर से निकाल देते हैं या उनके साथ वस्तु की तरह व्यवहार करते हैं।
🖊️ दिखावा
शाम नाथ समाज का दिखावा का प्रतीक है जैसा कि
चलो ठीक है ।
कोई चूड़ियां वूड़ियां हो, तो वह भी पहन लो ।कोई हर्ज नहीं है। चूड़ियां कहां से लाऊं बेटा ,तुम तो जानते हो सब जेवर तुम्हारी पढ़ाई में बिक गए ।
यह वाक्य शामनाथ को तीर की तरह लगा ….बोले यह कौन- सा राग छेड़ दिया मां ।सीधा कह दो नहीं है जेवर, बस इससे पढ़ाई वढ़ाई का क्या ताल्लुक है?
जो जेवर बिका तो कुछ बनकर ही आया हूं निरा लडुका तो नहीं लौट आया जितना दिया था उससे दुगना ले लेना ।
मेरी जीभ जल जाए, बेटा तुम से जेवर लूंगी मेरे मुंह से यूं ही निकल गया।
जो होते तो लाख बार पहनती।
🖊️मुक्त व्यवहार
साहब तो ड्रिंक के दूसरे दौर में भी चुटकुले और कहानियां कहने लग गए थे दफ्तर में जितना रोब रखते थे यहां पर उतने ही दोस्त परवर हो रहे थे और उनकी स्त्री काला गाउन पहने गले में सफेद मोतियों का हार सेंट और पाउडर की महक से ओत-प्रोत कमरे में बैठे सभी कमरे में बैठे सभी देशी स्त्रियों की आराधना का केंद्र बनी थी ।
🖊️ मां को वस्तु की तरह तोलना
बरामदे में पहुंचते ही शामनाथ ने जो दृश्य उन्होंने देखा उससे उनकी टांगें लड़खड़ा गई और क्षणभर में सारा नशा हिरन होने लगा। बरामदे में कोठरी के बाहर कुर्सी पर ज्यों की त्यों बैठी थी मगर दोनों पांव कुर्सी की सीट पर रखे हुए और दाएं से बाएं और बाएं से दाएं झूल रहा था मुंह से लगातार खर्राटे की आवाजें आ रही थी जी किया कि मां को धक्का देकर उठा दे और उन्हें कोठरी में ढकेल दे मगर ऐसा करना संभव नहीं था और बाकी मेहमान पास खड़े थे।
चीफ के आने की तैयारी में सभी फालतू की वस्तुओं को अलमारी के पीछे फेंका जा रहा था। उसी वक्त मां को भी मां वस्तु की भांति देखते हैं
शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोछने की फुर्सत ना थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने उलझे हुए बालों का जुड़ा बनाए और पाउडर को मले और मिस्टर शामनाथ सिगरेट पर सिगरेट फूकते जा रहे हैं।एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे थे तभी उनको याद आया शाम नाथ भोले सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई पत्नी बोली क्या श्यामनाथ बोला मां का क्या होगा।
🖊️आदर
मां को देखते ही देशी अफसरों की कुछ स्त्रियां हंसी इतने में चीफ ने धीरे से कहा पुअर डियर मगर तब तक चीफ मां का बाया हाथ ही बार बार हिलाकर कह रहे थे हाउ डू यू डू
कहो मां मैं ठीक हूं ।
खैरियत से ।
मां कुछ बोली।
मां कहती है मैं ठीक हूं
कहो मां हाउ डू यू डू
श्यामनाथ के मन का क्षोभ कुछ कम होने लगा था ।
सच मुझे गांव के लोग बहुत पसंद है तब तो तुम्हारी मां को गीत और नाच भी आता होगा।
खुशी से सिर हिलाते हुए मां का सम्मान किया ।
मैं क्या गाऊ बेटा मुझे नहीं आता ।
कोई बढ़िया सुना दो तराना।
🖊️मां के बेटे के प्रति वात्सल्य प्रेम को दिखाया गया है शिक्षित सामनाथ के माध्यम से शिक्षित युवा वर्ग पर करारा व्यंग्य किया गया है
यह कहानी शिक्षित वर्ग के लिए अशिक्षित आचरण की कहानी है ।
मां को प्राचीनता का आदर्श रूप में चित्रित करना चाह रहा है ऐसा ही हुआ है करारा व्यंग किया गया है ऐसी समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है इसमें मार्मिक कला विशेष से परिपूर्ण है। पाश्चात्य विचार और व्यवहार के कारणनष्ट होते हुए भारतीय आदर्शों की तरफ भी ध्यान दिया हैं ।
बूढ़ी मां को प्राचीनता का आदर्श रूप में चित्रित किया है मध्यवर्ग के नौकरी पेशा लोगों की मनोवृति को उजागर करना है जिन मूल्यों को दर्शाना चाहता है वह पूर्ण रूप से सफल हुआ है यह कहानी आज के युग में प्रासंगिक है वर्तमान युग में वृद्धों के साथ इस कहानी की भांति ऐसा व्यवहार दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है।
मनीषा शर्मा
(दिल्ली विश्वविद्यालय)
टिप्पणीकार:-
1.किशन सरोज
(दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली)
बेजोड़ समीक्षा की है आपने, कहानी के ऊपरी परतों को उघाड़ कर उसके मार्मिक और सूक्ष्म बिंदुओं को बारीकी से देखने का प्रयत्न किया है। किंतु आपकी समीक्षा में एक बात खटक रही है वो ये कि कहानी का उद्देश्य जो कि युद्ध की विभीषिका की परिपाटी पर लिखी गया एक मौन प्रेम प्रेम कथा है। जिसमें त्याग और समर्पण का मिश्रण करके गुलेरी जी ने इसको अमर और जीवंत बना दिया है। इस पर थोड़ा और विस्तार देने की आवश्यकता महसूस होती है। क्योंकि पाठक की निगाह सदैव इन्हीं बिंदुओं को निहारती है। बाकि आपने कहानी की सर्वागिण समीक्षा की है जिसके लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है।👌👌
2.तेजप्रताप कुमार तेजस्वी(दिल्ली विश्विद्यालय, दिल्ली)
दोनों समीक्षाएँ प्रशंसनीय हैं।ये समीक्षाएँ इस बात की घोतक हैं कि समीक्षिका कहानियों की जाँच पड़ताल बेहतर तरीके से किये हैं।’उसने कहा था’ को सभी समीक्षकों ने प्रेम और बलिदान के कहानी के रूप में ही देखने का प्रयास किया है,जो काफी हद तक सही भी है।परन्तु कुछ सवाल तो बनते हैं -क्या सूबेदारनी का आँचल पसारकर सिर्फ अपने बेटे और पति के जीवनदान माँगना उनका स्वार्थ नहीं है,क्या प्रेम में पुरुष ही बलिदान देते रहेंगे,या मान लीजिए यह सूबेदारनी का लहना सिंह के प्रति निश्च्छल विश्वास है तो क्या विश्वास की इतनी बड़ी कीमत अदा की जा सकती है कि वे उस व्यक्ति का जीवन ही माँग लें आदि आदि सवाल तो जरूर बनते हैं।इस पर विचार करना चाहिए।
कहानी में सूबेदारनी का आँचल पसारकर अपने पति और बेटे के जीवनदान का भिक्षा मंगना भारतीय स्त्री की वह दुख है जो कष्टदायक है।यह दुख हर उस स्त्री का है जिसका बेटा और पति सैनिक हैं।यह दुख कठिन है।
कहानी के प्रारंभ में प्रेम का आकर्षण तेरी कुरवाई से स्टार्ट तो होती है,मगर मेरी मरवाई पर खत्म होती है।यह समाज का दोहरापन ही है,जिसे समझना होगा।आदर्श के तले कितने लहना सिंह मारे जाएंगे।इस ओर भी सोचने को मजबूर करता है।कहानी का अंत करुण है।’वजीरासिंह के आँसू टपक रहे हैं’-ये वजीरासिंह भी इसी समाज के हैं और लहनासिंह भी इसी समाज के हैं।सूबेदारनी को आँचल पसारकर भिक्षा माँगने से पहले इनके बारे में भी सोचना चाहिए।बहरहाल…।
आपकी समीक्षाएँ बेहतर हैं।पुनः आपको हार्दिक शुभकामनाएं।आप युहीं समीक्षाएँ करती रहें।
-तेजस्वी
‘चीफ की दावत’
यह कहानी मध्यमवर्ग पर आधारित है।यह वही मध्यमवर्ग है जो समाज के सामने आदर्श पेश करते हैं।यह आदर्श खोखला है।इस बात की यह प्रमाण कहानी है।’चीफ की दावत’ एक भारतीय मध्यमवर्ग के परिवार के द्वारा बुलाई गई है।जो अपनी स्वार्थलिप्सा की पूर्ति के लिए दिखावा कर रहे हैं।चीफ को अगर पश्चिमी सभ्यता के व्यक्ति के रूप में देखें तो वे पश्चिमी हैं भी,परन्तु उन्हें भारतीयता से प्रेम है।यहाँ की कला के वे प्रेमी हैं,जबकि भारतीय नहीं हैं।कितने शामनाथ को चीफ आ आकर अपने माँ का आदर सम्मान करना सिखाएंगे?कितने माँ अपनी बेटे और बहू के प्रताड़ना के शिकार होंगे?आदि सवाल सोचनीय है।मध्यमवर्गीय परिवार पर यह कहानी गहरा व्यंग करती है कि आप आदर्श प्रस्तुत करने से पहले अपने आप को झाँके।आज भी अनेक माएँ शामनाथ और उनके बहु के दुत्कार सहने के लिए मजबूर हैं।विशेष कहानी ग्रामीण सभ्यता और संस्कृति की ओर ध्यान भी आकृष्ट कराती है।ग्रामीण संस्कृति को बचाना ही भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार के लिए शान की बात हो सकती है।
‘जंग ए महाज्ञान:-हिंदी प्रतियोगिता’ ( संचालक-तेजप्रताप कुमार तेजस्वी ) की तरफ से प्रस्तुत समीक्षा