एकदिन ऐसा फिर आएगा

एकदिन ऐसा फिर आएगा साहित्य जन मंथन

प्रकृति सचेत कर रही है,
बार बार यह संकेत दे रही है।
मनुष्य कराह रहा है
फिर भी,
असावधानी बरते जा रहा है।

असावधानी से कोरोना बढ़ जाएगा
ये जानते हुए भी,
इतनी कर्तव्य विमुखता क्यूँ?

पशु, पक्षी, फूल, पत्ती
सब है तुम्हारे हितैषी
यह जानते हुए भी,
इतनी कठोरता
क्या नहीं बची अब तुममे मानवता?

थोड़ा सा संघर्ष और मानव
वर्तमान की समस्या को मिटाने के लिए।
थोड़ी विनम्रता, थोड़ा धैर्य,
इस संकट से बाहर आने के लिए।

सामाजिक दूरी के साथ संयम रक्खों
कर्तव्यनिष्ठ कर्म करो।
डरो नहीं,
बढ़े चलो।
कोरोना भी मिट्टी में मिल जाएगा,
एकदिन ऐसा फिर आएगा, एकदिन ऐसा फिर आएगा।

शैलजा दुबे

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