गाँधी जी का स्वच्छता संदेश

गाँधी जी का स्वच्छता संदेश साहित्य जन मंथन

विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा आयोजित ‘‘महात्मा गाँधी का स्वच्छता संदेश’’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में प्रस्तुत आलेख:
गाँधी जी का स्वच्छता संदेश

गाँधी जी के लिए स्वच्छता केवल बाह्य स्वच्छता नहीं थी अपितु उनके लिए स्वच्छता के कई आयाम थे। उनके लिए मात्र शारीरिक स्वच्छता ही नहीं अपितु मानसिक स्वच्छता व निर्मलता भी अनिवार्य थी। गाँधी जी के अनुसार यह स्वच्छता व निर्मलता व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन में भी अनिवार्य थी। सामाजिक परिवेश की निर्मलता के अतिरिक्त गाँधी जी पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति भी अत्यंत सचेत थे। हम सब जानते हैं कि गाँधी जी बड़े उद्योगों के पक्ष में न होकर लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के पक्ष में थे। उन्हें पता था कि बड़े उद्योंगों से न केवल शोषण की प्रक्रिया तेज़ होगी अपितु प्राकृतिक परिवेश भी बुरी तरह से प्रभावित होगा।

गाँधी जी का स्वच्छता संदेश विषय पर चर्चा करने से पूर्व मैं अत्यंत संक्षेप में अपनी कुछ आदतों के विषय में बात करना चाहूँगा। मैंने आज तक अपने जूते अन्य किसी से भी पाॅलिश नहीं करवाए हैं। पहले मैं अपने जूते ही नहीं बच्चों के व पत्नी के जूते भी स्वयं ही पाॅलिश करता था। मैं अपने घर के सभी शौचालय आज भी स्वयं साफ करता हूँ। घर में ही नहीं बाहर भी जब भी किसी शौचालय का प्रयोग करता हूँ तो चाहे वो जैसा भी मिले मैं उसे पूरी तरह से साफ करके ही बाहर निकलता हूँ। और भी कई तरह की स्वच्छता का पालन करने का प्रयास करता हूँ। ये बात मैं किंचित गर्व से कह सकता हूँ कि स्वच्छता के मामले में मैं बहुत से लोगों से बहुत आगे हूँ। जब मैं कभी विचार करता हूँ कि मूुझे स्वच्छता की प्रेरणा कहाँ से मिली तो एक ही नाम मेरे मन में उभरता है और वो है महात्मा गाँधी। जब भी मैंने गाँधी जी को अथवा गाँधी जी के विषय में पढ़ा उसने मुझे गहरे तक प्रभावित किया। गाँधी जी हमेशा मेरे रोल माॅडल रहे हैं और आज भी हैं। उनके स्वच्छता के संदेश ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है।

यदि हम सत्य और अहिंसा ही नहीं स्वच्छता शब्द का उच्चारण भी करते हैं तो गाँधी जी की छवि अनायास हमारे मन-मस्तिष्क पर अंकित हो जाती है। वास्तव में गाँधी जी स्वच्छता के पर्याय थे। चाहे कितना भी महत्त्वपूर्ण कार्य उनके सामने रहा हो उन्होंने स्वच्छता के कार्य को हमेशा प्राथमिकता दी। वर्ष 2014 में देश में जिस स्वच्छता मिशन का प्रारंभ हुआ वो भी गाँधी जी के जन्म दिवस अर्थात् दो अक्तूबर को ही प्रारंभ किया गया। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि गाँधी जी और स्वच्छता कितने अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। प्रश्न उठता है कि क्या गाँधी जी ने स्वच्छता के लिए लोगों को बहुत प्रोत्साहित किया था? क्या किसी के प्रोत्साहित करने मात्र से हमारे अंदर अच्छी आदतों का विकास संभव है? प्रोत्साहन का प्रभाव होता है लेकिन एक सीमा तक ही। वास्तव में किसी भी क्षेत्र में गाँधी जी का कार्य करने का जो तरीका था वो अद्भुत था। गाँधी जी कभी उपदेश नहीं देते थे अपितु कार्य करने में विश्वास रखते थे। गाँधी जी ने स्वच्छता के विषय में भी बड़ी-बड़ी बातें नहीं कीं अपितु जहाँ भी गए स्वयं स्वच्छता का उदाहरण प्रस्तुत किया।

गाँधी जी ने लोगों से स्वच्छ रहने के लिए कहा लेकिन स्वच्छता का प्रारंभ स्वयं से किया। वे जहाँ भी जाते गंदगी देखते ही झाड़ू और टोकरी उठाकर काम में लग जाते। बात कूड़े-करकट तक सीमित नहीं रही गाँधी जी ने मल-मूत्र तक साफ करके लोगों के सम्मुख स्वच्छता का महान आदर्श प्रस्तुत किया। गाँधी जी बड़ी-बड़ी बातें करने की बजाय स्वयं करने में विश्वास करते थे। एक बार किसी ने जब उनसे पूछा कि आप लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे तो गाँधी जी ने कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। यदि उसमें कुछ अच्छा है तो उसे दोहराएँ। गाँधी जी का जीवन बहुआयामी रहा है। उन्होंने अनेक बड़े-बड़े कार्य किए लेकिन किसी छोटे से लगने वाले कार्य की भी कभी उपेक्षा नहीं की। स्वच्छता के संदर्भ में भी उनका जीवन उनका संदेश बना इसमें संदेह नहीं। यदि गाँधी जी के जीवन में स्वच्छता की बात करें तो उसका प्रारंभ प्रमुख रूप से दक्षिणी अफ्रीका से होता है। जब गाँधी जी दक्षिणी अफ्रीका में थे तो उन्होंने देखा कि वहाँ रहने वाले अंग्रेज़ वहाँ रहने वाले भारतीयों से बहुत नफरत करते थे जिसका प्रमुख कारण था भारतीयों की शोचनीय दशा। दक्षिणी अफ्रीका में बसने वाले अधिकांश भारतीय न केवल गंदी बस्तियों में रहते थे अपितु स्वच्छता के प्रति भी पूरी तरह से उदासीन थे। स्वच्छता के प्रति उनमें कोई जागरूकता नहीं थी।

गाँधी जी के लिए स्वच्छता के कई आयाम थे। उनके लिए व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता ही नहीं सामुदायिक स्वच्छता भी महत्त्वपूर्ण थी। गाँधी जी की दृष्टि अत्यंत व्यापक थी। उन्हें पता था कि गंदे मोहौल में कोई एक साफ व्यक्ति भी स्वच्छ व नीरोग नहीं रह सकता। उन्होंने सामुदायिक जीवन में सुधार की शुरूआत वहीं दक्षिणी अफ्रीका से की। गाँधी जी ने वहाँ पर कई आश्रमों की स्थापना की जहाँ पर स्वच्छता का विशेष घ्यान रखा जाता था। वास्तव में उनके आश्रम स्वच्छता की मिसाल रहे हैं। दक्षिणी अफ्रीका में भी गाँधी जी न केवल मलिन बस्तियों में गए अपितु स्वयं सफाई करके लोगों को स्वच्छता की ओर आकर्षित किया। बाद में गाँधी जी हमेशा के लिए भारत लौट आए। यहाँ गाँधी जी का प्रमुख कार्य था देश की आज़ादी के लिए संघष। गाँधी जी जब अधिवेशनों में भाग लेने जाते तो वहाँ की सफाई व्यवस्था को देखकर बहुत दुखी होते थे। लोगों के रहने के आसपास फैला कूड़ा-करकट ही नहीं मल-मूत्र देखकर वे बहुत परेशान हो जाते थे। अनेक स्थानों पर जब उन्होंने स्वयं सेवकों से सफाई करने के लिए कहा तो उन्होंने गाँधी जी से कहा कि ये उनका काम नहीं है। तब गाँधी जी स्वयं ही झाड़ू और बाल्टी लेकर सफाई के काम में लग जाते। उन्होंने मल-मूत्र तक साफ किया। स्वयं कार्य करके उन्होंने स्वयं सेवकों को गंदगी साफ करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह सफाई व्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार होने लगा।

गाँधी जी जहाँ भी जाते सबसे पहले वहाँ के शौचालयों को देखने जाते। यदि कहीं कोई कमी मिलती तो अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य छोड़कर स्वयं सफाई में लग जाते। गाँधी जी का स्पष्ट मत था कि स्वच्छता के बिना स्वतंत्रता का कोई महत्त्व नहीं। वे स्वतंत्रता के साथ-साथ एक स्वच्छ राष्ट्र की कल्पना भी करते थे। स्वच्छता के लिए गाँधी जी ने न जाने कितने प्रयोग किए। उन्हें दूसरों की गंदगी साफ करने से भी परहेज नहीं था। गाँधी जी ने न जाने कितनी बार दूसरे लोगों की गंदगी और मल-मूत्र साफ किया लेकिन उनका ज़ोर इस बात पर रहा कि हम अपनी सफाई ख़ुद करना सीखें और करें। गाँधी जी ने सर पर मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए कम प्रयास नहीं किए। वो ये भी मानते थे कि गंदगी साफ करना किसी एक वर्ग विशेष का कार्य नहीं है। हमें अपने अन्य कार्यों की तरह अपनी सफाई का कार्य भी स्वयं करना चाहिए। उन्होंने शौचालयों की तकनीक में सुधार का कार्य भी किया जिससे सफाई अपेक्षाकृत सरल हो सके। गाँधी जी कहते थे कि हमारे शौचालय हमारे रसोईघरों जैसे साफ-सुथरे और स्वच्छ होने चाहिएँ। ये गाँधी जी के प्रयासों का ही परिणाम है जो स्वच्छता के प्रति लोगों के विचारों में परिवर्तन आया और इस क्षेत्र में बहुत सुधार हुआ। लोगों में स्वयं साफ-सफाई करने के लिए जागरूकता उत्पन्न हुई।

जैसा कि पहले भी निवेदन किया जा चुका है गाँधी जी के लिए स्वच्छता केवल बाह्य स्वच्छता नहीं थी अपितु उनके लिए स्वच्छता के कई आयाम थे। उनके लिए मात्र शारीरिक स्वच्छता ही नहीं अपितु मानसिक स्वच्छता व निर्मलता भी अनिवार्य थी। गाँधी जी के अनुसार यह स्वच्छता व निर्मलता व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन में भी अनिवार्य थी। इस क्षेत्र में हम कितना सफल हुए इस विषय पर हम यहाँ पर विस्तार से चर्चा नहीं करेंगे। सामाजिक परिवेश की निर्मलता के अतिरिक्त गाँधी जी पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति भी अत्यंत सचेत थे। हम सब जानते हैं कि गाँधी जी बड़े उद्योगों के पक्ष में न होकर लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के पक्ष में थे। उन्हें पता था कि बड़े उद्योंगों से न केवल शोषण की प्रक्रिया तेज़ होगी अपितु प्राकृतिक परिवेश भी बुरी तरह से प्रभावित होगा। उनकी बातों को नज़रअंदाज़ करने का ही परिणाम है कि लघु व कुटीर उद्योग समाप्त होने से न केवल रोज़गार की स्थिति अत्यंत भयावह हो चुकी है अपितु पर्यावरण भी बुरी तरह से प्रदूषित हो चुका है। बड़े शहरों में तो साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है।

गाँधी जी ने अपने सामुदायिक जीवन में कुटीर उद्योगों को बहुत महत्त्व दिया। उन्होंने प्रदूषणरहित हाथ के कार्यों को प्राथमिकता दी। इस प्रकार से हम देखते हैं कि गाँधी जी ने स्वच्छता व शुद्धता के हर बिंदु को स्पर्श किया और अपने स्वयं के उदाहरणों द्वारा लोगों को प्रेरित किया। लोगों ने गाँधी जी की बातों को स्वीकार किया इसका प्रमुख कारण यही है कि उन्होंने मात्र उपदेश नहीं दिया अपितु स्वयं करके दिखलाया। गाँधी जी ने शारीरिक और मानसिक स्वच्छता व निर्मलता के जिस स्तर को प्राप्त किया वह दुर्लभ है। आज यदि पर्याप्त राशि व्यय करने के बाद भी हम स्वच्छता के अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाते हैं तो इसके प्रमुख कारण उपदेशात्मक वृत्ति व भ्रष्टाचार ही हैं। यदि हम चाहते हैं कि स्वच्छता का कार्यक्रम सही अर्थों में सफल हो तो हमें आडंबर छोड़कर गाँधी जी की तरह स्वयं उदाहरण बनना होगा। इसी में निहित है गाँधी जी के स्वच्छता के संदेश की सफलता।

सीताराम गुप्ता
ए.डी.-106-सी, पीतमपुरा,
दिल्ली-110034

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *