Gandhi : जब भारत में बैठी गुलामी और शोषण नामक बिमारियों का इलाज से कोई नतीजा नहीं निकल रहा था, तब गाँधी जी का यहॉं आना हुआ। गाँधी जी ताजी हवा की उस प्रवल प्रवाह की तरह थे, जिसने अपने बहाव से भारत को बहुत -सी बिमारियों से मुक्त किया। वे उस रोशनी की तरह थे, जिसने भारत के करोड़ों लोगों के ऑंखो से अंधकार का पर्दा हटा दिया।
एक नया तत्व, भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर छोटा-सा बादल जैसा प्रकट हुआ, जो तेजी के साथ बढ़कर और फैलकर सारे भारतीय आकाश पर छा गया।यह नया तत्व मोहनदास करमचंद गाँधी था। गाँधी की आवाज दूसरी आवाज़ों से कुछ अलग तरह की थी। यह बे-शोर और धीमी थी, फिर भी भीड़ के शोरगुल के उपर सुनाई दे सकती थी।मुलायम और हल्की थी,पर मालूम होता था कि उसमें फौलाद की धार छिपी हुई थी। यह नर्म और दिल और दिल को छूने वाली थी। इसका हर शब्द अर्थ-भरा था और उसमें जान लड़ाने की सच्ची लगन थी।सुलह और दोस्ती की भाषा के पीछे शक्ति थी,कर्म की कॉंपती हुईं छाया थी और असत्य के आगे सिर न झुकानें का पक्का इरादा था।उनकी सीख का सार था, सत्य और निर्भयता और इसके साथ सक्रियता मिली हुई थी। चूँकि, डर झूठ का करीबी दोस्त है, इसलिए गाँधी जी निडरता पर बल देते थे, क्योंकि निडरता के साथ सच आता ही है। गाँधी का विचार था कि सभी को भयमुक्त हो जाना चाहिए, क्योंकि इससे आपको नैतिक बल मिलता है।
गाँधी एक नवप्रवर्तक थे और वे भारत में नवप्रवर्तन लाना चाहते थे। इसलिए वे भारत में संत या विचारक के साथ-साथ राजनीतिक करिश्मावादी नेता के रूप में प्रकट हुए।गाँधी भारत में अपने एक अलग तरह के विचार लाये। गाँधी के पहले राजनीति का एक सिद्धांत प्रसिद्ध था और वह था मैक्यावली ( जिसे आधुनिक राजनीति का जन्मदाता कहा जाता है) का सिद्धांत : “यथार्थवाद और अवसरवाद”, पर गांधी ने इस सिद्धांत को झूठला दिया।
गाँधी के लिए राजनीति का मतलब था, नैतिकता और धर्म। यहां धर्म का आशय किसी पंथ से नहीं था, यहां धर्म का मतलब था ” मानविय मूल्य”। अर्थात वैसी राजनीति जो नैतिकता और मानवीय मूल्यों पर आधारित हो। लोग उन्हें संत और राजनीतिज्ञ दोनों समझने लगें। उन्होंने हिंदू किसानों को आकर्षित करने के लिए रामचरितमानस की चौपाई को उद्वित किया। वे कई मुसलमानों के घर गएं और उनके साथ वहां कुछ समय भी बिताए। उनका रेलगाड़ी के तीसरे दर्जे में सफर करना,नाली साफ करना- ग़रीबों और दलितों की स्वतंत्रता आंदोलन में सहमति का काम किया। डॉ आंबेडकर- दलितों और निम्न वर्गों के एक लोकप्रिय नेता थे, पर गाँधी को निम्न वर्गों में उनसे ज्यादा लोकप्रियता प्राप्त थी। गाँधी उन्हें हरिजन कहा करते थे। गाँधी की इसी सर्व-सहमति, अहिंसा और सत्य की भावना ने भारत के आज़ादी के स्वरूप को बदला। और भारत की आज़ादी में सबसे कम रक्तपात और हिंसा हुई। इस सर्व- सहमति का कारण यह हुआ कि भारत के संविधान निर्माण में पूरे ३ वर्षों तक खुली बहस चली। शायद ही इतना खुला और बिना हिंसा के किसी भी देश का संविधान बना होगा और यह संविधान भारत में 6 दशकों से स्थिर और कार्यरत है।
उन्होंने अपने नवप्रवर्तन में तीन महत्वपूर्ण तत्वों को उभारा जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सार बन गई और वो तत्व थें:
(१). अहिंसा- यह जनभागीदारी के अनुकूल थी। महिलाओं के भागीदारी के अनुकूल थी तथा यह बौद्ध और जैन धर्म के मानने वाले लोगों को विशेष रूप से आकर्षित करता था।
(२). सत्याग्रह- यह एक राजनीतिक प्रतिरोध जो जनमानस के लिए आकर्षण का विषय बना।
(३) स्वराज- इससे गांधी का मतलब नैतिक आज़ादी से था।
जब गांधी ने अहिंसा को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक शस्त्र के रूप में प्रयोग किया तो दुनिया कहने लगी कि इससे कुछ नहीं होने वाला है,पर गांधी कहते थे कि चाहे धातु कितना भी कठोर हो, एक निश्चित तापमान पर पिघलना ही पड़ता है। यही अहिंसा रूपी तापमान ने ब्रिटिश शासन को पिघला दिया और अन्ततः गांधी के विचार, कार्य तथा उनके नर्म आवाज ने भारत से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पीयूष प्रिये
छात्र
जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज
कक्षा: स्नातक