बूंद से बूंद मिलकर
नदियां बनी, सागर बने और महासागर बने
शब्द से शब्द मिलकर
कविता बनी, कहानी बनी और उपन्यास बने
हवा और लहरों को मिलाकर
तुफान, आंधी और बवंड़र बने
सूरज और चांद मिलकर
दिन और रातें बनी
तुम से मैं बना
और मैं से तुम और साथ ही जीवन का गठजोड़
इक्कीसवीं सदी के लोग बना रहे हैं
बीस और बीते उन्नीस के मेल से
बाईसवीं सदी
सृष्टी के ढलते हुए इस दौर
बनाई जा रही हैं योजनाएं
दो से दो के जोड़ से
पांच होने तक
बिना जोड़ और बिना मेल
सब फेस होता नजर आ रहा है
उसी तरह जिस तरह
एक पन्ने से किताब नहीं बनती
उसी तरह जिस तरह
नहीं बनता बिना आसमान के
व्योमकक्ष।
जितेन्द्र कुमार