हर रोज कलम उठा लेता हूँ,
दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँ
जब जब उठती हैं यदों की लहरें,
अपने दिल को समझा लेता हूँ,
दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँ..
पलकों के बन्धन में बांध लेता हूँ
आंख मूंद तस्वीर बना लेता हूँ,
वो बन उच्छवास छिपते मेरी सांसों में,
देख उन्हें सांसें थाम लेता हूँ
दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँ..
अतीत की स्मृतियों में झांक लेता हूँ,
उर की विहलता को शांत कर लेता हूँ,
न देखा कभी पलकें उठाकर उन्होंने हमें,
इस निष्ठुरता को कलम कि स्याही बना लेता हूँ,
मैं दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँ
खुदरी जमीन पर फूलों की चादर बिछा लेता हूँ,
भूल अरुण अधरों को मैं मन मिला लेता हूँ
विरह की अग्नि में जलता रहूं कितना भी भला,
अंत में खुद को समझा लेता हूँ
मैं दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँ….
अनुज कुमार