malay nirav ki kavitayen:
१.तड़पती मछलियाँ
वो लहराती जुल्फें,
हसीं वादियां,
वो सूखी डालियाँ,
तड़पती मछलियाँ,
मैं कहता था,हसीं वादियां,
वो याद दिलाती थी-
तड़पती मछलियाँ!!
२.बेजुबां
इस कहे-अनकहे दौर में,
मुझ-सा इन्सान कहा,
बदजुबानी से बेहतर है-
बेजुबां रहना!!
३. प्रेम-खत
(क)
चाँद के सामने तारें,
सूरज के सामने चाँद,
और उनके सामने मैं,
सब फीके-फीके सा हैं!!🥰
(ख)
एक धूल भरी पगडंडी थी,
उस पर थी उसकी पदचाप,
मैं चला उस पदचाप पर,
दूर कहीं वो चल रही थी,
रकीब की पदचाप पर!!!❤
४.जोंक
मुझे,
इतना बदनाम
क्यों किया गया!
मैं तो,
बस
अपना आहार लेता!
उस,
परमपिता की
मैं देन हूँ,
फ़िर कैसे इतना बदनाम हूँ!
क्या,
मैं इन्सान नहीं हूँ,
इसी से
गुनहगार हूँ!
मैं,
गर्व से कहता,
बहरूपिया इन्सान नहीं,
जोंक हूँ!
मलय नीरव, पूर्व छात्र
दिल्ली विश्वविद्यालय
Atisundar.
Prasansniya🤗😍
बहुत खूब👌👌😊😊
क्या लिखूँ तेरी लिखें – ए – तारीफ मेँ , मेरे हमदम
अल्फाज खत्म हो गये हैँ, तेरी अदाएँ देख-देख के🥰
Awesome 😍
सब एक से बढ़कर एक । बेजुबां और तड़पती मछलियां दोनों बेहतरीन हैं ।