काम / कामायनी / जयशंकर प्रसाद
काम / भाग १ / कामायनी / “मधुमय वसंत जीवन-वन के,बह अंतरिक्ष की लहरों में।कब आये थे तुम चुपके से,रजनी के पिछले पहरों में? क्या तुम्हें देखकर आते यों,मतवाली कोयल बोली थी?उस नीरवता में अलसाई,कलियों ने आँखे खोली थीं? जब लीला से तुम सीख रहे,कोरक-कोने में लुक करना।तब शिथिल सुरभि आगे पढ़ें..