पृथ्वी की गोद में

पृथ्वी की गोद में साहित्य जन मंथन

बनी रहे साफ स्वच्छ निर्मल
धरा हम सभी की।
ये पृथ्वी हमसे नहीं,
हम पृथ्वी से हैं ।

चायनीज वायरस
आज अवसर है एक।
कि जानें हम अपनी सीमाएं,
तय करें अपनी रेखाएं।

सीमित संसाधनों का
न्यूनतम उपभोग कर सकें,
इस जीवन की अवधि को
दुगुना कर सकें।

प्रकृति की मनोरम गोद में,
सांस लें खुले आसमान में,
विचरें खुली जमीन में,
साफ नदियां और स्वच्छ हवा।
पर्यावरण में पारिस्थितिकीय सन्तुलन
बरकरार रहे हमीं प्राणियों से।

आओ यह प्रण लें और
एक बीज जरूर दबा दें,
पृथ्वी की गोद में,
क्या पता विशाल वृक्ष का रूप
ले ले वह भविष्य में।

जिसकी छांव हमें न सही
आने वाली कई पीढ़ियों को मिलेगी,
ये संसाधन हमारे लिए ही नहीं
हैं आने वाली कई पीढ़ियों के भी
आज जरूरी है सोचें हम
कि क्या देकर जायेंगे उन्हें हम।

कमलेश

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