देश को स्वाधीनता प्राप्त करें 72 वर्ष हो गए हैं। यह किसी व्यक्ति या देश के संदर्भ में बहुत लंबा समय है, जिसे कहीं पीछे छोड़ कर हम बहुत आगे बढ़ गये हैं किंतु जब पलट कर देते हैं तो अपने आप को वहीं खड़ा हुआ पाते हैं। क्योंकि बहुत सारी ऐसी समस्या हमारे पीछे-पीछे घिसटती यहां तक आ पहुंची है। जिससे पीछा छुड़ाना क्या एक सपने मात्र बनकर रह गया है?भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, दरिद्रता और मानवीयता दांव पर लगी दिखाई देती है, सुभद्रा कुमारी चौहान का इन अनुभूतियों के साथ साक्षात्कार हो चुका था। जिसकी अमिट छाप उनकी कहानी ‘राही’ में भली-भाति दिखाई देती है वह इस समय की कुशल रचनाकारों में गिनी जाती हैं उस समय को गद्य विधाओं में पिरोकर बखूबी इस बात का परिचय देती है।
यह कहानी सुभद्रा कुमारी चौहान के अनुभव पर आधारित होने के कारण पाठक के चित पर एक विशेष प्रभाव डालती है इस संदर्भ में प्रसिद्ध लेखिका ‘सुधा अरोड़ा’ का कहना है कि “सुभद्रा जी के जीवन के बारे में जानने के बाद हम उनकी कहानियां पढ़े तो स्पष्ट हो जाता है कि सुभद्रा जीने अपने जैन जीवन अपने परिवेश अपने इर्द-गिर्द के चरित्रो को ज्यो-का-त्यों कहानियों में ढाल दिया है इसलिए उनकी कहानियों में न बनावट है न बुनावट।”
लेखिका परिचय:
सुभद्रा कुमारी चौहान(16 अगस्त 1904-25 फरवरी 1948) का जन्म इलाहाबाद के निकट निहालपुर नाम गांव में रामनाथ सिंह के जमीदार परिवार में हुआ था वह हिंदी के सुप्रसिद्ध कवयित्री, कहानीकार ही नहीं थी देश के स्वाधीनता संग्राम में भी उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान निभाया है।
उनके दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए। पर उनकी प्रसिद्धि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी गई कविता ‘झांसी की रानी’ ने उन्हें साहित्य जगत में अमरता प्रदान की। ऐसे कई रचनाकार हुए हैं, जिनकी एक ही रचना सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुई कि आगे आने वाली दूसरी रचना गौण हो गई।
सुभद्रा कुमारी चौहान को बचपन से ही पढ़ने-लिखने शौक था और साहित्य के प्रति उनकी रुचि थी जिसके चलते 1913 में 9 वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका ‘मर्यादा’ में छपी।
काव्य संग्रह : मुकुल और त्रिधारा
कहानी संग्रह : बिखरे मोती1932, उन्मादिनी1934, सीधे साधे चित्र 1947।
सम्मान :
- इनकी रचना मुकुल और बिखरे मोती के लिए भी पुरुस्कार मिला है।
- भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को सुभद्रा कुमारी चौहान की राष्ट्रीय प्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है।
*भारतीय डाक तार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पेैसे का एक डाक टिकट जारी किया है। *सुभद्रा कुमारी चौहान जी की लिखित कहानी उनके जेल अनुभवों पर आधारित है।इस कहानी में दो ही प्रमुख पात्र है एक राही और दूसरी अनीता। कहानी की शुरुआत संवादों के माध्यम से होती हैं।
गरीबों की विवशता :
समाज मे विषम परिस्थितियां व्याप्त थी, जिनके कारण व्यक्ति को अपने व अपने परिवार का पेट भरने के लिए चोरी जैसे अपराधो का सहारा लेना पड़ता था, जिसकी उन्हें बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।
“तेरा नाम क्या है?
-राही।
तुझे किस अपराध की सजा हुई है?
- चोरी की थी सरकार।
चोरी क्या चुराया था? - नाज की गठरी।
कितना नाज था? - होगा पाँच छः सेर।
और सजा कितने दिन की है? - साल भर की।
तो तूने चोरी क्यों की?”
पूंजीपति वर्गों का अधिपत्य :
लेखिका ने समाज मे व्याप्त एक वर्ग जिसे सर्वहारा शब्द से दर्शाया जाता है, उनके संघर्ष का वर्णन करती है। तब भी इन पर पूंजीपतियों का दबदबा था और आज भी संघर्ष करना गरीबो का अनिवार्य अंग बन गया है।
पुनः अनीता द्वारा प्रश्न किया जाता है।
“-मजदूरी करती तब भी तो दिन भर में तीन-चार आने पैसे मिल जाते।”
उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए राही कहती है
“-हमें मजदूरी नहीं मिलती सरकार।
हमारी जाति ‘मांगरोरी’ है।”
“हम केवल मांगते खाते हैं और भीख ना मिले तो फिर चोरी करते हैं। उस दिन घर में खाने को नहीं था बच्चे भूख से तड़प रहे थे। बाजार में बहुत देर तक मांगा। बोझा ढोने के लिए टोकरा लेकर बैठी रही। पर कुछ ना मिला। सामने किसी का बच्चा रो रहा था, उसे देख कर मुझे अपने बच्चों की याद आ गई। वहीं पर किसी की नाज की गठरी रखी हुई थी। उसे लेकर भागी ही थी पुलिसवालों ने पकड़ लिया।”
कानूनी व्यवस्था :
उच्चवर्ग के कुछ लोगो में गरीबों के प्रति सहानुभूति का भाव उत्पन्न हो ही जाता है परन्तु उनमे उत्पन्न दंश वह गरीब ही जानता है
अपनी बेबसी, लाचारी देश और कानूनी व्यवस्था के आगे भी वह अपने को बेबस ही पाते है।
“अनिता ने एक ठंडी साँस ली। और बोली-फिर तूने कहा नहीं कि बच्चे भूखे थे, इसलिए चोरी की। संभव है इस बात से मजिस्ट्रेट कम सजा देते। राही ने कहा- हम गरीबों की कौन सुनता, सरकार! बच्चे आए थे कचहरी में। मैंने सब कुछ कहा, पर किसी ने नहीं सुना।”
गरीबी की मार कुछ ऐसी पड़ती है जिसका दर्द बस वही समझ सकता है जो उसे झेलता हैं उच्चवर्ग बस उस का अनुमान ही लगता सकता है उसके पीछे की विवशता तो बस वह गरीब ही जानता है।
“अब तेरे बच्चे किसके पास है? उनका बाप है? अनिता ने पूछा। राही की आंखों में आंसू आ गए। वह बोली उनका बाप मर गया, सरकार। जेल में उसे मारा था और वहीं अस्पताल में वह मर गया। अब बच्चों का कोई नहीं है। अनीता ने प्रश्न किया-‘तो तेरे बच्चों का बाप भी जेल में ही मरा। वह क्यों जेल आया था?’ उसे तो बिना कसूर ही पकड़ लिया था, सरकार, राही ने कहा-ताड़ी पीने को गया था। दो-चार दोस्त भाई उसके साथ थे। मेरे घरवाले का एक वक्त पुलिस से झगड़ा हो गया था, उसी का बदला उसने लिया। 109 में उसका चालान करके साल भर की सजा दी। वही वह मर गया।”
लेखिका ने कानून व्यवस्था की झलक हमारे सामने कुछ ऐसी उकेरी है, जिसे देखकर यही प्रतीत होता है कि इस व्यवस्था ने भी गरीबो पर दोहरी चोट के सिवाय कुछ नही किया।
देश की दरिद्रता :
देश की ऐसी हालत है कि एक गरीब और लाचार महिला जिसे पांच-छः सेर अनाज के लिए एक साल की सजा हो जाती है और एक ओर सत्याग्रह करके जेल आया “उच्चवर्ग” का प्रतिनिधि अपनी सुविधा के हिसाब से ‘ए’ तथा ‘ब’ क्लास चुनने का एक प्रकार से अधिकार रखता है।
“अनीता सत्याग्रह करके जेल आई थी। पहले उसे ‘बी’ क्लास दिया था फिर उसके घर वालों ने लिखा-पढ़ी करके उसे ‘ए’ क्लास दिलवा दिया। इन सबके बाद अनीता सोचती है, कि देश की दरिद्रता और इन निरीह गरीबों के कष्टों को दूर करने का कोई उपाय है? किंतु वह क्या है? जब देश के सभी लोग भगवान की संतान है तो कम से कम सबके खाने पहनने का समान अधिकार तो होना ही चाहिये?”
जो व्यक्ति की मूलभूत जरूरतें होती है, उस पर सबका समान अधिकार है, किंतु फिर यह क्या कारण है? कि कुछ लोग तो बहुत आराम से रहते हैं और कुछ लोग पेट के अन्न के लिए चोरी करते हैं।
अपने नियमों का परिणाम :
लेखिका कहती है “उस समय के अंग्रेजी शासन व्यवस्था में निरीह हमदर्दी तक व्याप्त नही थी, बस उन्हें अपने नियमों का पालन करना है उसके परिणाम से उन्हें क्या?”
“जिसके कारण वह छोटे-छोटे बच्चों की माताएं जेल भेज दी जाती है। उनके बच्चे भूखो मरने के लिए छोड़ दिए जाते हैं।”
देशभक्ति :
एक ओर तो यह कैदी है, जो जेल आकर सचमुच जेल जीवन के कष्ट उठाती हैं, और दूसरी और हम लोग जो अपनी देशभक्ति और त्याग का ढिंढोरा पीटते हुए जेल आते हैं। अनीता कहती है "हमारे साथ दूसरे कैदियों के मुकाबले में अच्छा बर्ताव किया जाता है। फिर भी हमें संतोष नहीं होता जेल आकर भी हम कौन सा बड़ा त्याग कर देते हैं? सिवाय इसके कि हमारे माथे पर नेतृत्व की मोहर लग जाती है। हम बड़े अभिमान से कहते हैं, 'यह हमारी चौथी जेल यात्रा है या 'यह हमारी पांचवी जेल यात्रा है,' और अपनी यात्राओं के किस्से सुना सुनाकर वह आत्मगौरव अनुभव करते हैं, कई बार जेल में आने को वह अपनी देशभक्ति प्रतिष्ठा और त्याग से अपने आपको दूसरों से ऊपर उठा देते हैं।"
सत्ताभक्ति :
यहां लेखिका स्वयं के जेल अनुभव को कहानी की पात्र अनीता द्वारा यह प्रश्न उठती हैं। क्या सब सुख सुविधा के साथ जेल में रहना या आना, सच्ची देशभक्ति है? या कांग्रेस को थोड़ी शक्तियां प्राप्त होते ही दल में पद को ग्रहण करने की लालसा देशभक्ति है या सत्ताभक्ति?
“इसके बल पर जेल से छूटने के बाद कांग्रेस को राजकीय सत्ता मिलते ही हम मिनिस्टर, स्थानिक संस्थाओं के मेंबर और क्या-क्या हो जाते हैं। कल तक जो खादी भी न पहनते थे, बात-बात पर कांग्रेस का मजाक उड़ाते थे, कांग्रेस के हाथों में थोड़ी शक्ति आते ही वे कांग्रेस भक्त बन गए। खादी पहनने लगे। जहां तक की जेल में भी दिखाई पड़ने लगे। वास्तव में यह देशभक्ति है या सत्ताभक्ति।”
आत्मग्लानि का भाव :
स्वाधीनता संग्राम में शासन की डोर को अपने हाथों में ले लेने से या उस पर स्वराज स्थापित हो जाने से देश की सारी समस्या हल नही हो जाती हैं। साथ मे सामाजिक, आर्थिक स्थितियों पर हमें ध्यान देना होगा। परंतु क्या ऐसा हो पाया है? क्या गरीब कभी गरीबी की मार से उबर पाया है?
“अनीता के भीतर विचारों का उभार आता रहता है यह कहती है उसकी देश भक्ति नहीं वरन मजाक है। उसे आत्मग्लानि हुई और साथ ही साथ आत्मानुभूति भी। अनीता की आत्मा बोल उठी वास्तव में सच्ची देशभक्ति तो इन गरीबों के कष्ट निवारण में हैं।”
मानवीयता सबसे बड़ा धर्म है :
स्वाधीनता संग्राम में जो वर्ग प्रतिनिधित्व कर रहा था, वह एक खास तबके से संबंधित था। लेखिका एक स्थान पर अनीता द्वारा कहती हैं।
“यह कोई दूसरे नहीं हमारी ही भारत माता की संताने हैं इन हजारों लाखों भूखे नंगे भाई बहनों की यदि हम कुछ भी सेवा कर सके थोड़ा भी कष्ट निवारण कर सके तो सचमुच हमने अपने देश की सेवा है वह आगे कहती है हमारा वास्तविक देश तो यह देहात में ही है”
कहानी के माध्यम से गरीबो को किसान से भी ज्यादा कष्ट झेलना पड़ता है, यह बताते हुए लेखिका कहती है कि-
“किसानों की दुर्दशा से हम सभी थोड़ा बहुत परिचित हैं पर इन गरीबों के पास ना घर है ना द्वार।”
अंग्रेजों द्वारा नील की खेती अपने फायदे के लिए जबरन कराई जाती थी पर इन गरीबों के पास न खेती करने के लिए और न मजदूरी करने के लिए भी कोई व्यवस्था थी।
अशिक्षा :
एक स्थान पर आकर लेखिका अनीता द्वारा कहलवाती है "अशिक्षा और अज्ञानता इतनी ज्यादा व्याप्त है कि होश सम्भालतें ही माता पुत्री को और सास बहू को चोरी की शिक्षा देती है।"
सुख कल्पना मात्र भी नही :
“उनका विश्वास है कि चोरी करना और भीख मांगना ही उनका काम है इससे अच्छा जीवन बिताने की वह कल्पना ही नहीं कर सकते।”
इन सब स्थितियों पर लेखिका प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहती है उनका विश्वास है क्या मानव जीवन का यह लक्ष्य हैं?
जीवन लक्ष्य की तलाश :
लेखिका मानव जीवन के मूल्यों, सच्चे देशप्रेम का भाव, देशभक्ति और सत्ता के लोलुपता पर विचार करते हुए अनेकों प्रश्न उठाते हुए अनीता के माध्यम से मानव जीवन के लक्ष्य तथा सच्ची देशभक्ति का अर्थ तलाशती हैं।
“क्या मानस जीवन का यही लक्ष्य है? लक्ष्य है भी अथवा नहीं? यदि नहीं है तो विचारादर्श कुछ सतह पर टिके हुए हमारे जन-नायको और युग-पुरुषों की हमें क्या आवशकता? इतिहास, धर्म दर्शन, ज्ञान- विज्ञान, का कोई अर्थ नहीं होता? पर जीवन का लक्ष्य अवश्य है। मानवता को जीवन-दान देने की अपेक्षा भी कोई महत्तर पूण्य है? राही जैसी भोली-भाली किंतु गुमराह आत्माओ के कल्याण की साधना जीवन की साधना होनी चाहिए।”
उद्देश्य :
अनीता के मन मस्तिष्क में इन प्रश्नों का तांता लगा ही रहता है जिसको लेखिका एक स्वप्न के रूप में दिखती हैं। एक आदर्शवादी स्वप्न के कारण ढूंढती है जहाँ देश को अपाहिज बनाने वाले तत्व से देश स्वतंत्र है। अनीता के माध्यम से ऐसे देश प्रेम की कल्पना को साकार करने का प्रयास किया है, जो देश के स्वतंत्रता का सही महत्व राही और उनके जैसे जातियों को साथ लेकर विकास और उन्हें देश का नागरिक होने के हक में मूलभूत जरूरतों की पूर्ति करने में देशभक्ति है। एक अर्थ खोजती है और मानती है कि अपने देश की सच्ची सेवा लोगों को भी साथ लेकर चलने में हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी राही मैं राष्ट्रीय चेतना के स्वर की अभिव्यक्ति एक समूची युग का आईना है जिसे स्वधीनता प्राप्ति की दिशा में तथा तत्कालीन परिस्थितियों की मांग के अनुसार अतीत और वर्तमान दोनों से प्रेरणा लेकर जनमानस को राष्ट्रीय भूमिका में संस्कारित करने की अपनी सर्जनात्मक शक्ति लगा दी।
जब कोई भी रचनाकार रचना करता है तो वह अपने समय के साथ-साथ आने वाले समय को देखकर भी रचना करता है। राही कहानी जो उस समय में रची गई, आज के समय में भी सटीक बैठती है। आज भी गरीब लोग अपनी भूख के लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं चाहे कितनी गर्मी हो सर्दी हो तन पर एक भी कपड़ा ना हो, फिर भी पूरी लगन से अपने कार्य(मजदूरी) करते हैं।आज के दौर में भी पूंजीपति वर्ग हमेशा इन्हें दबाने की कोशिश करता रहता हैं उनको कभी आगे बढ़ने नहीं देते।
विजयलक्ष्मी
(दिल्ली विश्वविद्यालय)
💐टिप्पणीकार💐
1.डिम्पल-दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली(sol)
आपकी समीक्षा प्रशंसनीय है और पठनीय भी ।इसके लिए आपको बहुत -बहुत बधाई ।💐
परन्तु वर्तनी की औए व्याकरणिक अशुद्धि कहीं -कहीं देखने को मिली। आशा है आप इस ओर ध्यान देंगी।
पुन: आपको बहुत- बहुत बधाई दोस्त ।💐
2.राखी-(वही)
आपने कहानी की काफी सराहनीय विवेचना की …कहानी आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिकता रखती है जितनी कि स्वतंत्रतापूर्व …लेखिका के विचारों को सहजता से उकरने के लिए आपको बहुत- बहुत बधाई 💐💐
3.मनीषा-दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
💐💐कहानी “राही” की समीक्षा सार्थक एवं प्रशंसनीय है ।
इसके लिए आपको अत्यंत शुभकामनाएं 💐💐
कहानी के एक दम गर्त में जाकर आपने गोता लगाया है। कहानी के सभी तथ्यों का गहनता से उल्लेख कर प्रत्येक बिंदुओं को आपने अपनी समीक्षा में रखा है।
समीक्षा में कुछ त्रुटियां झलक रही है:-
कारक
लिंग
शिरोरेखा
अल्पविराम
योजक चिह्न
पूर्ण विराम आदि।
हमें आशा है, कि आप अशुद्धियों पर विशेष रुप से ध्यान देंगी और भविष्य में एक अच्छे समीक्षक के रूप में अग्रसर होंगी।
समीक्षा के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई💐💐
4.धन्नजय-पटना विश्विद्यालय, पटना
आपकी समीक्षा सराहनीय है,आपने कहानी के कथ्य को स्पष्ट ढंग से व्याख्या किया है।कहानी के शिल्प पक्ष पर थोड़ी समीक्षा की जरूरत थी।कहानी की भाषा सरल है जिसमें महत्वपूर्ण विचार समाहित है।लेखिका ने अनीता के माध्यम से स्वप्न में आगे की रणनीति तैयार करती है,जो मूलतः अंतिम पंक्ति में शामिल व्यक्ति के लिए है।गांधी भी समाज के अंतिम पंक्ति के लोगों की जीवन सुधार की बात करते हैं।लेखिका का कहानी का अंत इसी उद्देश्य को लेकर होता है।
सार्थक समीक्षा के लिए आपको बहुत -बहुत बधाई!
5.तेजप्रताप कुमार तेजस्वी-दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
समीक्षा उत्कृष्ट है।आपने प्रत्येक तत्त्व को सामने लाने का प्रयास किया है।आपको ढेर सारी शुभकामनाएं।इस कहानी का मुख्य स्वर राष्ट्रीयता है।साथ ही सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक पक्ष भी है।शासन व्यवस्था की खिल्लियाँ भी उड़ाई गयी है।शासन तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को उजागर किया गया है।किसान की स्थिति आज भी दयनीय है और कल भी था और आनेवाले भविष्य में क्या होगा कहना मुश्किल है?गरीबों के कष्ट निवारण ही सच्ची देशभक्ति है-इसकी वकालत कहानी करती है।यह कहानी ‘मैला आँचल’ के निकट ले जाता है।जैसे-
कहानी-“इसके बेल पर जेल से छूटने के बाद कांग्रेस के राजकीय सत्ता मिलते ही हम मिनिस्टर,स्थानिक संस्थाओं के मेंबर और क्या क्या बन जाते हैं।”
ठीक उसी प्रकार रेणु कहते हैं-
“बरसा में गड्ढे जब जाते हैं भर
बेंग हजारों उसमें करते हैं टर्र
वैसे ही राज आज कांग्रेस का है
लीडर बने हैं सभी कल के गीदड़ जोगीड़ा सर ..र..र…”
अन्ततः आपकी समीक्षा बहुत सुंदर है।वर्तनी, लिंग,वचन,कारक चिन्ह,वाक्य संगठन और छोटी छोटी वाक्य आदि कमियों पर काम करने की हम सभी को जरूरत है।कुछ गलतियां-
1.चुकानी पड़ती थी।
2.अनाज की गठरी
3.. उतपन्न सहानुभूति का दंश
4.मुहर
.देखती है,..तत्त्व.. महत्त्व