महाकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘थक कर बैठ गये क्या भाई मंज़िल दूर नहीं है’ (Ramdhari Singh Dinkar)
Ramdhari Singh Dinkar: यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है थक कर बैठ गये क्या भाई मंज़िल दूर नहीं है चिंगारी बन गयी लहू की बूंद गिरी जो पग सेचमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिन्ह जगमग सेशुरू हुई आराध्य भूमि यह क्लांत नहीं रे राही;और नहीं तो पांव लगे हैं आगे पढ़ें..