Shamshan : Mamta Kumari
कहाँ था वो समाज?
जो कहता है
कि छोटे कपड़े ही ज़िम्मेदार है!
कहाँ थे वो धर्म के ठेकेदार?
जो कहते है
चेहरा ढक के चलो!
उस 9 साल की बच्ची ने
तुम्हारे इन जुर्म के पैमानों में से
आख़िर कौन सा जुर्म किया था?
बोलो?
जवाब दो?
क्या उसका ये जुर्म था की वो सड़कों पर भीख मांगती थी?
क्या उसका ये जुर्म था कि वो अपने पिता और भाई के रिश्तों से वंचित थी?
क्या उसका ये जुर्म था कि माँ बेटी एक दूसरे सहारा थी?
तौलते रहना लड़कियों को
अपने सवालों से और तब तक तौलना
जब तक एक-एक की बहन-बेटी
दफ़न न मिले किसी शमशान में!
आख़िर उसने कौन-सा जुर्म किया था?
वो तो अपनी और
अपनी माँ की प्यास बुझाने के लिए
उस शमशान घाट के पास पानी भरने गयी थी;
उसे क्या पता था कि
कुछ राक्षस उससे अपनी प्यास बुझाएंगे!
और दफ़ना देंगे उसी शमशान में।
उस ‘माँ’ की तो ममता मर गयी होगी,
उसका तो सब कुछ मिट्टी में दफ़न हो गया।
दिल्ली जैसे राज्य की गलियों में ये हाल है;
अन्य राज्य की गलियों में न जाने
कितनी ऐसी संख्याएँ दफ़न होती होंगी
आज नहीं कहोगे; कपड़े छोटे थे?
– ममता कुमारी