सुबह की जल्दबाजी

सुबह की जल्दबाजी साहित्य जन मंथन

कोरोना के कारण सभी अपने घरों में हैं
हम भी अपने घर पर रह लेते हैं।
घर में सुबह की जल्दबाजी नहीं है
हर सुबह एक मुस्कुराहट और जादू की झप्पी है
जरुरी नहीं देर से ही उठना है
थोड़ा जल्दी उठकर व्यायाम कर लेते हैं,
पापा का सुबह जल्दी काम पर निकल जाना।
ठीक है! अब नाश्ता एक साथ ही कर लेते हैं।
काम में उलझी मां का थोड़ा हाथ बंटा लेते हैं।
जो करियर बनाने में व्यस्त हैं,
समय थोडा़ परिवार को दे देते हैं।
छोटे भाई-बहन के पेपर खत्म
लूडो,केरम खेल, करके थोड़ी बेईमानी
सबके साथ थोड़ी मस्ती और कर लेते हैं।
शाम की चाय की चुस्की के साथ कुछ बना लेते हैं
गर बन जाए ज्यादा, असहाय बच्चों में बांट देते हैं।
कोरोना है खतरनाक, बरगद की जड़ें बचा लेते हैं।
मन-मुटावों को भूलकर, मन की बातें कर लेते हैं।
रात हो गई एक बार फिर साथ खाना खा लेते हैं,
मिठाई की तरह रिश्तों में मिठास घोल लेते हैं।
यह सब करते-करते गुनगुना पानी पी लेते हैं,
साथ ही हर घंटे बीस सेकेण्ड हाथ धो लेते हैं।
आपकी जान मेरे हाथों में,मेरी जान आपके हाथों में
कुछ दिन एक-दूसरे की जान का ख़्याल रख लेते हैं।
समय थोड़ा थम-सा गया है,
परिवार के साथ अच्छी यादें बना लेते हैं।
कुछ दिन हम सब अपने घर पर ही रह लेते हैं।
(बरगद की जड़ें = बुजुर्ग)

भावना राय

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