एकदिन ऐसा फिर आएगा
प्रकृति सचेत कर रही है,बार बार यह संकेत दे रही है।मनुष्य कराह रहा हैफिर भी,असावधानी बरते जा रहा है। असावधानी से कोरोना बढ़ जाएगाये जानते हुए भी,इतनी कर्तव्य विमुखता क्यूँ? पशु, पक्षी, फूल, पत्तीसब है तुम्हारे हितैषीयह जानते हुए भी,इतनी कठोरताक्या नहीं बची अब तुममे मानवता? थोड़ा सा संघर्ष और आगे पढ़ें..