चिंता / कामायनी साहित्य जन मंथन

चिंता / कामायनी

चिंता / भाग 1 / कामायनी हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँहएक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह। नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन,एक तत्व की ही प्रधानता, कहो उसे जड़ या चेतन। दूर दूर तक विस्तृत था आगे पढ़ें..