रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 1 साहित्य जन मंथन

रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 1

‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल। ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,दया-धर्म जिसमें हो, सबसे आगे पढ़ें..

रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर" साहित्य जन मंथन

रश्मिरथी / रामधारी सिंह “दिनकर”

कथावस्तु रश्मिरथी का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों का हो। इस काव्य में रश्मिरथी नाम कर्ण का है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है कर्ण महाभारत महाकाव्य का अत्यन्त यशस्वी पात्र है। उसका जन्म पाण्डवों की माता कुन्ती के गर्भ से आगे पढ़ें..