तुम्हे भूल नही पायेंगे – अभिषेक कुमार

तुम्हे भूल नही पायेंगे - अभिषेक कुमार साहित्य जन मंथन

तुम्हे भूल नही पायेंगे
पहले-सा कभी फिर शायद
तुमसे जुड़ नही पायेंगे…
हमें याद आएगा हर वक्त

हर कदम पर हर जख्म
सर पे बोझ लिए नापे हुए डगर
लड़खड़ाये भी थे और सुस्ताये भी
पर आँखों में आंसू लिए हारे नही
हरपल हर पग सहते रहे बढ़ते रहे

तुम्हे भूल नही पायेंगे…
अपने हित में बेघर छोड़ गये
इंसानियत के भरोसे तोड़ गए
तुम्हारे मुँह फेरने की कला

जागे रहकर सोने की कला
सब जानकर भी चुप रहने की कला
सच में हम भूल नही पायेंगे
तुम्हे भूल नही पायेंगे…

अपनी बनाई सड़के पटरी पगडण्डी
फूले पाँव नापी है फिर एक बार
त्यागे है भूखे कईयों दिन-रात
रास्ते में छोड़ गये कईयों ने शरीर
पर अब भी हौंसला ना हारे है
सच में बेघर अनाथ अभागे है
तुम्हे भूल नही पायेंगे…

हमारी बेबसी की कहानी सदियों से है
तुम्हारा हित साधना भी कोई नया नही
फिर भी सदियों से सहयोगी रहे है
एक-दूसरे के रोजी-रोटी रहे है
हर बार पहले छला है नये-नये तरीकों से
घायल मन होकर भी फिर उठ खड़े हुए है
तुम्हे भूल नही पायेंगे…

कैसे किये जाते है दर्द सीने में दफन
कैसे नींद आती है देखकर लाचारी
कैसे खा पाते है देखकर दूसरे को भूखे
ये कला हमने अभी भी नहीं सीख पाई
बनावटी मिट्ठी बाते अब सुन नही पायेंगे
संकट में हमसे फेरे है जो अपनी निगाहें
तुम्हे भूल नही पायेंगे…

अभिषेक कुमार यादव
शोधार्थी (पीएचडी) दिल्ली विश्वविद्यालय

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