आओ फिर से दिया जलाएँ साहित्य जन मंथन

आओ फिर से दिया जलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ें- बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ हम पड़ाव को समझे मंज़िल लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल वतर्मान के मोहजाल में- आने वाला कल न भुलाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ। आगे पढ़ें..

मनाली मत जइयो साहित्य जन मंथन

मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो, गोरी राजा के राज में। जइयो तो जइयो, उड़िके मत जइयो, अधर में लटकीहौ, वायुदूत के जहाज़ में। जइयो तो जइयो, सन्देसा न पइयो, टेलिफोन बिगड़े हैं, मिर्धा महाराज में। जइयो तो जइयो, मशाल ले के जइयो, बिजुरी भइ बैरिन अंधेरिया रात में। जइयो तो जइयो, त्रिशूल आगे पढ़ें..